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देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति तृतीयोऽध्यायः
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ।
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ १४ ॥
श्री प्रत्यंगिर अष्टोत्तर शत नामावलि
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दकारादि दुर्गा अष्टोत्तर शत नामावलि
श्री प्रत्यंगिर अष्टोत्तर शत नामावलि
देवी माहात्म्यं अपराध क्षमापणा स्तोत्रम्
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।